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स्कंद पुराण तथा भविष्योत्तर पुराण के अनुसार ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को वट सावित्री व्रत करने का विधान है, वहीं निर्णयामृत आदि के अनुसार ज्येष्ठ मास की अमावस्या को यह व्रत करने की बात कही गई है। तिथियों में भिन्नता होते हुए भी व्रत का उद्देश्य एक ही है सौभाग्य की वृद्धि और पतिव्रत के संस्कारों को आत्मसात करना।

वट देव वृक्ष है। वट वृक्ष के मूल में ब्रह्मा, मध्य में विष्णु तथा अग्रभाग में शिव रहते हैं। देवी सावित्री भी वट वृक्ष में रहती हैं।

वट वृक्ष के नीचे सावित्री ने अपने पति को पुन: जीवित किया था। तब से यह व्रत ‘वट सावित्री’ के नाम से जाना जाता है। इसमें वट वृक्ष की पूजा की जाती है। महिलाएं अखण्ड सौभाग्य एवं परिवार की समृद्धि के लिए यह व्रत करती हैं। व्रत की परिक्रमा करते समय एक सौ आठ बार या यथाशक्ति सूत लपेटा जाता है। साड़ी पर रुपया रखकर बायने के रूप में सास को देकर आशीर्वाद लिया जाता है। महिलाएं सावित्री सत्यवान की कथा सुनती हैं। सावित्री की कथा को सुनने से सम्पूर्ण मनोरथ पूर्ण होते हैं और विपत्तियां दूर होती हैं।

Vat Savitri Vrat (Bad Mavas): Sat, 4 June 2016

Vat Savitri Vrat (Purnima) : Sun, 19 June 2016 

वट सावित्री व्रत कथा

मद्र देश के राजा अश्वपति ने पत्नी सहित सन्तान के लिये सावित्री देवी का विधी पूर्वक व्रत तथा पूजन करके पुत्री होने का वर प्राप्त किया सर्वगुण सम्पन देवी सावित्री ने पुत्री के रूप में अश्वपती के घर कन्या के रूप में जन्म लिया ।

कन्या के युवा होने पर अश्वपती ने अपने मंत्री के साथ सावित्री को अपना पती चुनने के लिये भेज दिया। सावित्री ने अपने मन के अनुकूल वर का चयन कर के लोटी तो उसी दिन देवर्षि नारद उनके यहा पधारे। नारद के पूछने पर सावित्री ने कहा महाराज धुमत्य सेन के पुत्र सत्यवान की कीर्ति सुनकर उन्हें मैंने पति रूप में वरन कर लिया है । नारदजी ने सत्यवान तथा सावित्री के ग्रहों की गणना कर अश्वपती को बधाई दी तथा सत्यवान के गुणों की भुरी भुरी प्रसंसा की और बताया की सवेत्री के बारह वर्ष की आयु होने पर सत्यवान की मृत्य हो जायेगी नारद की बात सुनकर राजा अस्वपती का चहरा मुरझा गया उन्होंने सावित्री से किसी अन्य को अपना पती चुनने की सलहा दी परन्तु सावित्री ने उतर दिया आर्य कन्या होने के नाते जब में सत्यवान का वरन कर चुकी हू तो अब वे चाहे अल्पायु हो या द्रिघायु में किसी अन्य को अपने हृदय में स्थान नही दे सकती ।

सावित्री ने नारदजी से सत्यवान की मुत्यु का समय ज्ञात कर लिया। दोनों को विवाह हो गया। सावित्री अपने श्वसुर परिवार के साथ जंगल में रहने लगी तथा नारदजी द्वारा बताये हुए दिन से तीन दिन पूर्व से ही सावित्री ने उपवास शुरु कर दिया । नारद द्वारा निश्चत तिथी को जब सत्यवान लकड़ी काटने के लिया चला तो सास स्वसुर से आज्ञा लेकर वह भी सत्यवान के साथ चल दी । सत्यवान वन में पहुचकर लकड़ी कटाने के लिये वृक्ष पर चढ़ा। वृक्ष पर चड़ने के बाद उसके सीर में भयंकर पीड़ा होने लगी तो वह नीचे उतरा | सावित्री ने उसे बड के पेड़ के नीचे लिटा कर उसका सिर अपनी गोद पर रख लिया | देखते ही देखते यमराज ने ब्रह्मा के विधान की रूप रेखा सावित्री के सामने स्पस्ट की ओर सत्यवान के प्राणों को लेकर चल दिये (कहीं –कही ऐसा भी उल्लेख मिलता है की वट वृक्ष के नीचे लेटे हुए सत्यवान को सर्प ने डस लिया था ) ।

सावित्री सत्यवान को वट वृक्ष के नीचे ही लिटाकर यमराज के पीछे –पीछे चल दी | पीछे आती हुई सावित्री को यमराज ने उसे लोट जाने का आदेश दिया | इस पर वह बोली महाराज जहां पति वही पत्नी | यही धर्म है, यही मर्यादा है | सावित्री की धर्म निष्टा से प्रसन्न होकर यमराज बोले पति के प्राणों के अतिरिक्त कुछ भी माँग लो | सावित्री ने यमराज से सास –श्वसुर के आखों की ज्योति और द्रिघायु माँगी | यमराज तथास्तु कहकर आगे बढ़ गये | सावित्री भी यमराज का पीछा करती रही ।

यमराज ने अपने पीछे आती सावित्री से वापिस लोट जाने को कहा तो सावित्री बोली पति के बिना नारी के जीवन की कोई सार्थकता नही | यमराज ने सावित्री के पति व्रत धर्म से खुश होकर पुनः वरदान माँगने के लिये कहा इस बार उसने अपने श्वसुर का राज्य वापिस दिलाने की प्राथना की तथास्तु कहकर यमराज आगे चल दिये | सावित्री अब भी यमराज के पीछे चलती रही इस बार सावित्री ने यमराज से सो पुत्रों की माँ बनने का वरदान माँगा | तथास्तु कहकर जब यमराज आगे बढ़े तो सावित्री बोली आपने मुझे सो पुत्रों का वरदान दिया है, पर पति के बिना मै माँ किस प्रकार बन सकती हूँ । अपना यह तीसरा वरदान पूरा कीजिए । सावित्री की धर्मनिष्ठा, ज्ञान, विवेक तथा पतिव्रत धर्म की बात जानकर यमराज ने सत्यवान के प्राणों को अपने पाश से स्वतंत्र कर दिया | सावित्री सत्यवान के प्रणों को लेकर वट वृक्ष के नीचे पहुची जहा सत्यवान का मृत शरीर रखा था | सावित्री ने वट वृक्ष की परिक्रमा की तो सत्यवान जीवित हो उठा |

प्रसन्नचित सावित्री अपने सास –श्वसुर के पास पहुची तो उन्हें नेत्र ज्योती प्राप्त हो गई | इसके बाद उनका खोया हुआ राज्य भी उन्हें मिल गया | आगे चलकर सावित्री सो पुत्रों के माता बनी इस प्रकार चारों दिशायें सावित्री के पतिव्रत धर्म के पालन की कीर्ति से गूंज उठीं |

विधि - विधान

वट की परिक्रमा करते समय एक सौ आठ बार या यथा शक्ति सुत लपेटा जाता है। ‘नमो वैवस्वताय’ इस मन्त्रसे वटवृक्षकी प्रदक्षिणा करनी चाहिये। सावित्रीको अर्घ्य देना चाहिये और वटवृक्षका सिंचन करते हुए अपने सौभाग्य की प्रार्थना करनी चाहिये। चने पर रुपया रखकर बायनेके रुपमें अपनी सासको देकर आशीर्वाद लिया जाता है। सौभाग्य-पिटारी और पुजा सामग्री किसी योग्य ब्राह्मणको दी जाती है।
संकल्प मंत्र -

‘‘मम वैधव्यादि-सकलदोषपरिहारार्थं सत्यवत्सावित्रीप्रीत्यर्थं च वटसावित्री व्रतमहं करिष्ये।’’

पूजा एवं प्रार्थना मंत्र  -

‘‘अवैधव्यं च सौभाग्यं देहि त्वं मम सुव्रते। पुत्रान् पौत्रांश्च सौख्यं च गृहाणाघ्र्यं नमोऽस्तु ते।।’’

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